अंतस की खुरचन: संवेदनशील कविताओं का संकलन
- शीर्षक: अंतस की खुरचन
- लेखक: यतीश कुमार
- विधा: हिंदी कवितायेँ
- पृष्ठ: १९०
- प्रकाशक: राधाकृष्ण प्रकाशन
- प्रस्तावना: अष्टभुजा शुक्ल
- समीक्षा: बीनू वर्मा वाघेला

“अंतस की खुरचन” संकलन है, आज के दौर की ऐसी कविताओं का, जिन्होंने मुझे निःशब्द कर दिया है.
सोचने पर विवश कर दिया है, कहाँ से शुरू करूँ?
पुस्तक दो खंडो में है: देशराग और आस पास और साझा धागा जिसमे करीब ९६ कवितायेँ पिरोयी गयी हैं. लेखक / कवि हालाँकि रेलवे सेवा के प्रशासनिक अधिकारी हैं और वर्तमान में ब्रैथवेट एंड कंपनी लिमिटेड के प्रभारी हैं, पर उनका साहित्य से नाता बहुत पुराना और सृजनात्मक है, जोकि एक दुर्लभ समन्वय है.
बिहार के मुंगेर से आने वाले यतीश कुमार जी की साहित्य जगत में रचनात्मक उपस्तिथि रही है. वह इन दिनों कोलकाता की साहित्यिक संस्था नीलाम्बर के अध्यक्ष हैं, और अपने संस्मरण और कविताएं, जोकि नया ज्ञानोदय, हंस, अहा! ज़िन्दगी, सन्मार्ग और प्रभात खबर में प्रकाशित होती रही हैं, के लिए प्रसिद्ध हैं.
“अंतस की खुरचन” उनका पहला कविता संग्रह है पर कविताओँ में बहुत ही संजीदगी और संवेदनशीलता है, जोकि उन्हें जाने माने कवियों की श्रेणी में लाती है. ज़िन्दगी और उसके बाद की ज़िन्दगी पर, उनके द्वारा उकेरे गए शब्द आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे. उन्होंने ज़िन्दगी के हर पहलु को खूब जिया है, वर्णित किया है और शब्दों में पिरोया है.
यहाँ मैं अष्टभुजा शुक्ल जी द्वारा प्रेषित प्रस्तावना पर विशेष ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी, जिसको पढ़ना आपके लिए बहुत ही आवश्यक है, कवि के मन को जानने के लिए और उसके मर्म को समझने के लिए. बहुत ही सुन्दर प्रस्तावना जो हिंदी साहित्य जगत के कई पन्ने पलटती है और आपको कवि की बल्कि पुस्तक की दुनिया में प्रवेश करने की लिए प्रेरित करती हैं.
सभी कविताओँ के शीर्षक बहुत ही आकर्षक हैं और बहुत से ऐसे हैं जो आपको अचंभित कर जाते हैं जैसे की उनकी कुछ कविताएं. एक और चीज़ जिसने मुझे आकर्षित किया वह है उनका २-३-४-५- ६ पंक्तियों में सहजता से पिरोया गया काव्य. यह दर्षाता हैं कि कविताओँ की संरचना उन्मुक्त मन से की गयी है, बिना किसी लय, पद्य या गद्य की बाधा को मानते हुए.
कविताओँ में गावों की सरज़मी है, शहरों की पृष्ठभूमि है, रंग हैं, कालिमा है, जीवन है, मृत्यु है, उलझन है, सुलझन है, माँ हैं, पिता हैं, पत्नी है, पुत्री है, मौन है, शोर है, दबाव है, ख़ुशी है और ग़म है. ज़िन्दगी को उन्होंने बहुत ही बारीकी से देखा और समझा है, और उससे भी बढ़कर बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है.

हर कविता बहुत कुछ कहती है …
- जीवन शेष लाशों की क़तार है
- एक धागा आगे का हट रहा है
- दूसरा पीछे जुड़ रहा है
- पंक्ति ख़त्म ही नहीं हो पा रही!
इस संकलन में जीवन के कड़ुवे सच हैं, तो रुमानियत भी हैं.
किसी ने सच ही कहा हैं, रुमानियत कविता का पहला पायदान हैं, और लेखक इस पायदान पे खूबसूरती से खड़े हैं.
- समय की असमय लहरों के बीच
- तुम्हारी मुस्कान वह अकाट्य शकुन हैं
- जिसकी बस एक नज़र
- सारे बेइरादे बुहार देती हैं
पहला खंड १३६ पेज तक चलता हैं उसके बाद दूसरा खंड शुरू होता हैं. दोनों खंडो में अलग अलग आगाज़ हैं, अंदाज़ हैं और अलफ़ाज़ हैं.
अगर आप कविता प्रेमी हैं या ज़िन्दगी के फलसफे को समझना चाहते हैं तो “अंतस की खुरचन” में आपके लिए बहुत कुछ हैं.
यतीश कुमार एक युवा कवि हैं, पर उनकी कवितायेँ अनुभवियों को भी उतना ही छूती और झकझोरती हैं, जितना युवाओं को.
- उन्ही दीवारों से से लिपटकर
- सिर को टिकाये हौले मुस्कुराती
- रूप बदल बदल कर
- रु-ब-रु हो रही हैं ज़िन्दगी
अपने माता पिता के साथ का बहुत ही जीवंत चित्रण हैं जो हम कभी समझ नहीं पाते. माँ अपने में अनेकों दुःख समेटे हैं और पिता ज़िम्मेदारियाँ, यही मूल हैं, इस अनमोल रिश्ते का.
आप जब पुस्तक पढ़ना शुरू करेंगे तो छोड़ना मुश्किल होगा, इसलिए समय निकाल कर पढ़िए, पर ये एक बार में समझ आने वाली कविता नहीं हैं, बार बार पढ़िए और आत्मसात कीजिये.
पुस्तक अमेज़न से मंगाई जा सकती हैं.
मैं इसे पढ़ने का पुर ज़ोर समर्थन करती हूँ, विशेषकर युवाओं द्वारा.
निकलिए मोबाइल, टैब और लैपटॉप की दुनिया से बाहर और पढ़िए – अंतस की खुरचन
यतीश, शुक्रिया! हमें वापस अपनी दुनिया में लाने के लिए…

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